Sardar Patel - Lauh Purush, who build the modern India

सरदार वल्लभ भाई पटेल

यह हर नागरिक की मुख्य जिम्मेदारी है कि वह महसूस करे कि उनका देश स्वतंत्र है और इसकी स्वतंत्रता की रक्षा करना उसका कर्तव्य है। हर भारतीय को अब यह भूल जाना चाहिए कि वह एक राजपूत, एक सिख या जाट है। उन्हें अवश्य याद रखना चाहिए कि वह एक भारतीय है और उनके पास अपने देश में हर अधिकार है लेकिन कुछ कर्तव्यों के साथ। -सरदार वल्लभ भाई पटेल

वल्लभभाई पटेल एक ऐसे नेता थे जो बोलने से ज्यादा काम करने में यकीन रखते थे और उनकी यही आदत ने उन्हें भारत का लोह-पुरुष बनाया| वल्लभ भाई पटेल एक राष्ट्रवादी नेता थे, जिन्होंने राष्ट्र के हित में साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनाने से कभी गुरेज नहीं किया और इन्ही नीतियों के दम पर इन्होने भारत की 565 रियासतों को एकाकार किया जिसके कारण भारत एक संपूर्ण संप्रभुता राष्ट्र बन सका और इन्हीं 565 रियासतों को मिलाने के कारण ही सरदार वल्लभ भाई पटेल को लौह-पुरुष कहां गया।

सरदार पटेल का जन्म नडियाद, गुजरात में एक कृषक परिवार में हुआ था। वे झवेरभाई पटेल एवं लाडबा देवी की चौथी संतान थे। सोमाभाई, नरसीभाई और विट्टलभाई उनके अग्रज थे। उनकी शिक्षा मुख्यतः स्वाध्याय से ही हुई। लन्दन जाकर उन्होंने बैरिस्टर की पढाई की और वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे। सरदार पटेल जी का विवाह सन 1893 में 16 वर्ष की अवस्‍था में झावेरबा के साथ हुुआ था और उनकी पत्नी की मृत्यु 1908 में हो गई थी। महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया। उनका सबसे पहला और बडा योगदान खेडा संघर्ष में हुआ, जब किसानों ने अंग्रेज सरकार से भारी कर में छूट की मांग की और सरदार पटेल, गांधीजी एवं अन्य लोगों ने किसानों का नेतृत्व करके सरकार को झुकाया और उस वर्ष करों में राहत दिलाई। यह सरदार पटेल की पहली सफलता थी। फिर उन्हें बारडोली का सरदार और बाद में केवल सरदार कहा जाने लगा।

आजादी के बाद, यद्यपि अधिकांश प्रान्तीय कांग्रेस समितियाँ पटेल के पक्ष में थीं, गांधी जी की इच्छा का आदर करते हुए पटेल जी ने प्रधानमंत्री पद की दौड से अपने को दूर रखा और इसके लिये नेहरू का समर्थन किया। उन्हे उपप्रधान मंत्री एवं गृह मंत्री का कार्य सौंपा गया। गृह मंत्री के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों (राज्यों) को भारत में मिलाना था। इसको उन्होने बिना कोई खून बहाये सम्पादित कर दिखाया। केवल हैदराबाद के आपरेशन पोलो के लिये उनको सेना भेजनी पडी। भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिये उन्हे भारत का लौह पुरूष के रूप में जाना जाता है।

सरदार पटेल ने आजादी के ठीक पूर्व ही पीवी मेनन के साथ मिलकर देसी राजाओं को बहुत समझाया जिसके परिणामस्वरूप जम्मू एवं कश्मीर, जूनागढ तथा हैदराबाद के राजाओं को छोडकर शेष सभी राजवाडों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। जूनागढ के नवाब के विरुद्ध जब बहुत विरोध हुआ तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और जूनागढ भी भारत में मिल गया। जब हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो 1948 में सरदार पटेल ने वहाँ सेना भेजकर मात्र 4 दिन की पुलिस कार्रवाई में निजाम का आत्मसमर्पण करा लिया। न कोई बम चला, न कोई क्रांति हुई, जैसा कि डराया जा रहा था, किन्तु नेहरू ने काश्मीर को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह समस्या एक अन्तराष्ट्रीय समस्या है।

नि:संदेह सरदार पटेल द्वारा यह 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य था। भारत की यह रक्तहीन क्रांति थी। महात्मा गांधी ने सरदार पटेल को इन रियासतों के बारे में लिखा था, “रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे।” 1950 में ही गोवा की स्वतंत्रता के संबंध में चली दो घंटे की कैबिनेट बैठक में लम्बी वार्ता सुनने के पश्चात सरदार पटेल ने केवल इतना कहा “क्या हम गोवा जाएंगे, केवल दो घंटे की बात है।” यदि पटेल की बात मानी गई होती तो 1961 तक गोवा की स्वतंत्रता की प्रतीक्षा न करनी पड़ती।

गृहमंत्री के रूप में वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय नागरिक सेवाओं (आई.सी.एस.) का भारतीयकरण कर इन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (आई.ए.एस.) बनाया। अंग्रेजों की सेवा करने वालों में विश्वास भरकर उन्हें राजभक्ति से देशभक्ति की ओर मोड़ा। यदि सरदार पटेल कुछ वर्ष जीवित रहते तो संभवत: नौकरशाही का पूर्ण कायाकल्प हो जाता। सरदार पटेल जहां पाकिस्तान की छद्म व चालाकी पूर्ण चालों से सतर्क थे वहीं देश के विघटनकारी तत्वों से भी सावधान करते थे। विशेषकर वे भारत में मुस्लिम लीग तथा कम्युनिस्टों की विभेदकारी तथा रूस के प्रति उनकी भक्ति से सजग थे। आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क भी कहा जाता है लेकिन लंदन के टाइम्स ने लिखा था “बिस्मार्क की सफलताएं पटेल के सामने महत्वहीन रह जाती हैं। यदि पटेल के कहने पर चलते तो कश्मीर, चीन, तिब्बत व नेपाल के हालात आज जैसे न होते। पटेल सही मायनों में मनु के शासन की कल्पना थे। उनमें कौटिल्य की कूटनीतिज्ञता तथा महाराज शिवाजी की दूरदर्शिता थी। वे केवल सरदार ही नहीं बल्कि भारतीयों के ह्मदय के सरदार थे।”

सरदार बल्‍लभ भाई पटेल को मरणोपरान्त वर्ष 1991 में भारत के सर्वोच्‍च सम्‍मान भारत रत्‍न से सम्‍मानित किया गया था यह अवार्ड उनके पौत्र विपिनभाई पटेल द्वारा स्वीकार किया गया। भारत की मोदी सरकार ने सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्मदिवस बनाने का फैसला किया था, जिसे “राष्ट्रीय एकता दिवस” के रूप में मनाया जाता हैं। सरदार पटेल के सम्‍मान में अहमदाबाद के हवाई अड्डे का नामकरण सरदार वल्लभभाई पटेल अन्तराष्ट्रीय हवाई अड्डा रखा गया है और उनकी 137वीं जयंती के अवसर पर 31 अक्टूबर, 2013 को गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के नर्मदा ज़िले में सरदार पटेल के स्मारक का शिलान्यास किया जिसका नाम “एकता की मूर्ति” (स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी) रखा गया है। सरदार पटेल एक ऐसे राजनैतिक संत थे जिन्होंने हमारे देश को एक सूत्र में पिरोने का काम किया और जिसके कारण उनका व्यक्तित्व एक “लौहपुरुष” के रूप में भारतीय मानस पर सदैव अंकित रहेगा।