नरेंद्र दामोदरदास मोदी

स्वतंत्र भारत के इतिहास में देश जब धर्म, सम्प्रदाय और जाति के नाम पर अलग अलग समूहों में बंट रहा था.. विभिन्न क्षेत्रीय और राष्ट्रीय राजनैतिक दल, जब धर्म और जाति के नाम पर अलग-अलग समूहों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे या करने का प्रयास कर रहे थे, उस समय २०१४ में भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र दामोदर दास मोदी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्यासी घोषित किया और देश को एक नारा दिया.. “सबका साथ सबका विकास“। इसी मूलमंत्र को स्वीकार करते हुए, देश के एक बड़े तबके ने जाति और धर्म की सीमाओं से ऊपर उठकर, विकास को अपना लक्ष्य बनाया और भारतीय जनता पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार के लिए मतदान किया। जब देश को विभिन्न तरह के जातिगत और धार्मिक मतभेदों के आधार पर अलग-अलग समूहों में बांटने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा था, उस समय वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को विकास के नाम पर एकजुट करने का कार्य किया।

नरेन्द्र मोदी का जन्म तत्कालीन बॉम्बे राज्य के महेसाना जिला स्थित वडनगर ग्राम में हीराबेन मोदी और दामोदरदास मूलचन्द मोदी के एक मध्यम-वर्गीय परिवार में १७ सितम्बर १९५० को हुआ था। नरेन्द्र जब विश्वविद्यालय के छात्र थे तभी से वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में नियमित जाने लगे थे। इस प्रकार उनका जीवन संघ के एक निष्ठावान प्रचारक के रूप में प्रारम्भ हुआ। उन्होंने शुरुआती जीवन से ही राजनीतिक सक्रियता दिखलायी और भारतीय जनता पार्टी का जनाधार मजबूत करने में प्रमुख भूमिका निभायी। गुजरात में शंकरसिंह वाघेला का जनाधार मजबूत बनाने में नरेन्द्र मोदी की ही रणनीति थी। जब गुजरात में १९९५ के विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने अपने बलबूते दो तिहाई बहुमत प्राप्त कर सरकार बना ली। इसी दौरान दो राष्ट्रीय घटनायें और इस देश में घटीं। पहली घटना थी सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक की रथयात्रा जिसमें आडवाणी के प्रमुख सारथी की मूमिका में नरेन्द्र का मुख्य सहयोग रहा। इसी प्रकार कन्याकुमारी से लेकर सुदूर उत्तर में स्थित काश्मीर तक की मुरली मनोहर जोशी की दूसरी रथ यात्रा भी नरेन्द्र मोदी की ही देखरेख में आयोजित हुई। 2001 में केशुभाई पटेल की सेहत बिगड़ने लगी थी और भाजपा चुनाव में कई सीट हार रही थी। इसके बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुख्यमंत्री के रूप में मोदी को नए उम्मीदवार के रूप में रखते हैं। हालांकि भाजपा के नेता लालकृष्ण आडवाणी, मोदी के सरकार चलाने के अनुभव की कमी के कारण चिंतित थे। मोदी ने पटेल के उप मुख्यमंत्री बनने का प्रस्ताव ठुकरा दिया और आडवाणी व अटल बिहारी वाजपेयी से बोले कि यदि गुजरात की जिम्मेदारी देनी है तो पूरी दें अन्यथा न दें। 3 अक्टूबर 2001 को यह केशुभाई पटेल के जगह गुजरात के मुख्यमंत्री बने। इसके साथ ही उन पर दिसम्बर 2002 में होने वाले चुनाव की पूरी जिम्मेदारी भी थी। वे गुजरात राज्य के 14वें मुख्यमन्त्री रहे और उनके काम के कारण गुजरात की जनता ने लगातार 4 बार (2001 से 2014 तक) मुख्यमन्त्री चुना। गोआ में भाजपा कार्यसमिति द्वारा नरेन्द्र मोदी को 2014 के लोक सभा चुनाव अभियान की कमान सौंपी गयी। चुनाव में जहाँ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ३३६ सीटें जीतकर सबसे बड़े संसदीय दल के रूप में उभरा वहीं अकेले भारतीय जनता पार्टी ने २८२ सीटों पर विजय प्राप्त की। नरेन्द्र मोदी स्वतन्त्र भारत में जन्म लेने वाले ऐसे व्यक्ति हैं जो सन २००१ से २०१४ तक लगभग १३ साल गुजरात के १४वें मुख्यमन्त्री रहे और हिन्दुस्तान के १५वें प्रधानमन्त्री बने।

नरेन्द्र मोदी की सफलताओं में बहुत बड़ा योगदान उनकी मेहनत का है, जो उनकी दृढ इच्छाशक्ति और कर्मयोगी होने के कारण आती है। चुनाव के समय वह केवल 3-4 घंटे ही सोते थे एंव प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वह 18 घंटे कार्य करते है। उनका आत्मविश्वाश ही है जिसके कारण वो मुसीबतों से नहीं डरते और सदैव प्रेरित एंव उत्साहित रहते है। अपने आत्मविश्वाश के कारण ही वो सही समय पर सही निर्णय लेने में सक्षम है, नोटबंदी जिसका एक बड़ा उदाहरण है। उनका आत्मविश्वाश उनके बोलने और लोगों से जुड़ने की क्षमता को एक नए आयाम तक ले जाता है और उनका सकारात्मक, आशावादी एवं रचनात्मक दृष्टिकोण, उन्हें सामान्य राजनेता से अलग करता है। अनुशासन और लोगों को साथ लेकर चलने की क्षमता उन्हें देश को मिलकर आगे ले जाने की शक्ति प्रदान करता है। देश की आम जनता की बात जानने और उन तक अपनी बात पहुंचाने के लिए नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम की शुरुआत की। इस कार्यक्रम के माध्यम से मोदी ने लोगों के विचारों को जानने की कोशिश की और साथ ही साथ उन्होंने लोगों से स्वच्छता अभियान सहित विभिन्न योजनाओं से जुड़ने की अपील की।

भ्रष्टाचार से सम्बन्धित विशेष जाँच दल (SIT) की स्थापना, काले धन तथा समान्तर अर्थव्यवस्था को समाप्त करने के लिये ८ नवम्बर से २०१६ से ५०० तथा १००० के प्रचलित नोटों को अमान्य करना, भारतीय सेना द्वारा म्यांमार और पाकिस्तान के अंदर जाकर सर्जिकल स्ट्राइक करना, डोकलाम विवाद, आतंक के खिलाफ कश्मीर में कार्यवाही के लिए सेना को मुक्त-हस्त प्रदान करना आदि ऐसे निर्णय है, जो उनकी दृढ इच्छाशक्ति और देश के प्रति समर्पण को प्रतिबिंबित करते है।

 

 

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