लौह पुरुष

भारतीय इतिहास सदैव ऐसे महापुरुषों का साक्षी रहा है जिन्होंने अपनी दृढ इच्छाशक्ति से भारत का भविष्य लिखा है.. जिन्होंने लाखों, करोङों लोगों के सपने अपनी आँखों से मात्र देखे ही नहीं, बल्कि उन्हें मूर्त-रूप भी दिया.. जिन्होंने लोगों की वेदना को न सिर्फ महसूस किया बल्कि उनके समाधान के लिए सार्थक पहल भी की.. जिनका जोर मात्र चिंतन पर ही नहीं, कर्म पर भी रहा है.. और उसी कर्मयोग के आधार पर समय ने उन्हें “लौह-पुरुष” के रूप में अंकित किया..

जब वेदों की समझ के बारे में मतभेद होने के कारण भारतीय समाज कई तरह की विसंगतियों से ग्रसित था और कई सम्प्रदायों का उद्भव हो रहा था, उस समय आदि शंकराचार्य (५०७ ई०पू० – ४७५ ई०पू०) ने आत्मा और परमात्मा की एकरूपता पर सन्देश दिया जिसके अनुसार परमात्मा एक ही समय में सगुण और निर्गुण दोनों ही स्वरूपों में रहता है और अद्वैत सिद्धांत का प्रचार तथा वार्ता पूरे भारत में करके भारतीय समाज को जोड़ने का कार्य किया| उन्होंने ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, मांडूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, बृहदारण्यक और छान्दोग्योपनिषद् पर भाष्य लिखा और भारत में चार कोनों पर चार मठों, दक्षिण में शृंगेरी शंकराचार्यपीठ, पूर्व (ओडिशा) जगन्नाथपुरी में गोवर्धनपीठ, पश्चिम द्वारिका में शारदामठ तथा बद्रिकाश्रम में ज्योतिर्पीठ की स्थापना की जो कि आज भी भारत की एकात्मकता को दिग्दर्शित कर रहा है।

भारत पर सिकन्दर के आक्रमण के कारण छोटे-छोटे राज्यों की पराजय से अभिभूत होकर चाणक्य (375 ई०पू० – 283 ई०पू०) ने व्यावहारिक राजनीति में प्रवेश करने का संकल्प किया। उनकी सर्वोपरि इच्छा, भारत को एक गौरवशाली और विशाल राज्य के रूप में देखने की थी। आचार्य कौटिल्य को एक ओर पारंगत और दूरदर्शी राजनीतिज्ञ के रूप में मौर्य साम्राज्य का संस्थापक और संरक्षक माना जाता है, तो दूसरी ओर उन्हें संस्कृति साहित्य के इतिहास में अपनी अतुलनीय एवं अद्भुत कृति के कारण अपने विषय का एकमात्र विद्वान होने का गौरव प्राप्त है। चन्द्रगुप्त में राजा बनने के स्वाभाविक गुण थे जिसको देखते हुए चाणक्य ने उन्हें अपना शिष्य बना लिया, एवं एक सबल राष्ट्र की नीव डाली जो की आज तक एक आदर्श है।

भारतीय इतिहास में हर शताब्दी ऐसे लोगों की अप्रतिम सोच और क्षमता की साक्षी रही है लेकिन १९वीं शताब्दी में भारत की आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए सरदार वल्लभ भाई पटेल ( 31 अक्टूबर, 1875 – 15 दिसंबर, 1950) को लौह पुरूष कहा गया, जिन्हें सरदार की उपाधि, बारडोली सत्याग्रह की सफलता पर वहाँ की महिलाओं ने दिया था। वल्लभभाई पटेल एक ऐसे नेता थे जो बोलने से ज्यादा काम करने में यकीन रखते थे और उनकी यही आदत ने उन्हें भारत का लोह-पुरुष बनाया वल्लभ भाई पटेल एक राष्ट्रवादी नेता थे, जिन्होंने राष्ट्र के हित में साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनाने से कभी गुरेज नहीं किया और इन्ही नीतियों के दम पर इन्होने भारत की 565 रियासतों को एकाकार किया जिसके कारण भारत एक संपूर्ण संप्रभुता राष्ट्र बन सका और इन्हीं 565 रियासतों को मिलाने के कारण ही सरदार वल्लभ भाई पटेल को लौह-पुरुष कहां गया।

स्वतंत्र भारत के इतिहास में देश जब धर्म, सम्प्रदाय और जाति के नाम पर अलग अलग समूहों में बंट रहा था.. विभिन्न क्षेत्रीय और राष्ट्रीय राजनैतिक दल, जब धर्म और जाति के नाम पर अलग-अलग समूहों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे या करने का प्रयास कर रहे थे, उस समय २०१४ में भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र दामोदरदास मोदी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्यासी घोषित किया और देश को एक नारा दिया.. “सबका साथ सबका विकास“। इसी मूलमंत्र को स्वीकार करते हुए, देश के एक बड़े तबके ने जाति और धर्म की सीमाओं से ऊपर उठकर, विकास को अपना लक्ष्य बनाया और भारतीय जनता पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार के लिए मतदान किया। जब देश को विभिन्न तरह के जातिगत और धार्मिक मतभेदों के आधार पर अलग-अलग समूहों में बांटने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा था, उस समय वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को विकास के नाम पर एकजुट करने का कार्य किया।