चाणक्य

आचार्य चाणक्य भारतीय इतिहास के सर्वाधिक प्रखर कुटनीतिज्ञ माने जाते है। अपने गूढ़ स्वभाव के कारण वे ‘कौटिल्य’ भी कहलाये जिनका वास्तविक नाम ‘विष्णुगुप्त’ था। चाणक्य देश की अखण्डता के अभिलाषी थे, इसलिये उन्होंने चंद्रगुप्त व्दारा यूनानी आक्रमणकारियों को भारत से बाहर निकलवा दिया और नंद वंश के अत्याचारों से पीड़ित प्रजा को भी मुक्ति दिलाई। महान मौर्य वंश की स्थापना का वास्तविक श्रेय अप्रतिम कूटनीतिज्ञ चाणक्य को ही जाता है जो एक विव्दान, दूरदर्शी तथा दृढसंकल्पी व्यक्ति थे और अर्थशास्त्र, राजनीति और कूटनीति के आचार्य थे। चन्द्रगुप्त में राजा बनने के स्वाभाविक गुण थे जिसको देखते हुए चाणक्य ने उन्हें अपना शिष्य बना लिया, एवं एक सबल राष्ट्र की नीव डाली जो की आज तक एक आदर्श है।

325 ईसापूर्व में उत्तर पश्चिमी भारत (आज के पाकिस्तान का लगभग सम्पूर्ण इलाका) सिकन्दर के क्षत्रपों का शासन था। जब सिकन्दर पंजाब पर चढ़ाई कर रहा था तब चाणक्य, मगध को साम्राज्य विस्तार के लिए प्रोत्साहित करने आये जोकि अच्छा खासा शक्तिशाली राज्य था लेकिन तत्कालीन मगध के सम्राट घनानन्द ने उन पर व्यंग्य करते हुए, उसको ठुकरा दिया जिसके कारण उन्होंने नन्द वंश के नाश की प्रतिज्ञा ली। उस समय मगध भारत का सबसे शक्तिशाली राज्य था जिस पर चाणक्य और चद्रगुप्त के मेल ने, ना सिर्फ विजय प्राप्त की बल्कि जनता का विश्वास भी जीता और इसके साथ चद्रगुप्त को सत्ता का अधिकार भी मिला। चन्द्रगुप्त ने सिकन्दर (अलेक्ज़ेन्डर) के सेनापति सेल्यूकस को ३०५ ईसापूर्व के आसपास हराया था। ग्रीक विवरण इस विजय का उल्ले़ख नहीं करते हैं पर इतना कहते हैं कि चन्द्रगुप्त (यूनानी स्रोतों में सैंड्रोकोटस नाम से ) और सेल्यूकस के बीच एक संधि हुई थी जिसके अनुसार सेल्यूकस ने कंधार, काबुल, हेरात और बलूचिस्तान के प्रदेश चन्द्रगुप्त को दे दिए थे। इसके साथ ही चन्द्रगुप्त ने उसे ५०० हाथी भेंट किए थे।

भारत पर सिकन्दर के आक्रमण के कारण छोटे-छोटे राज्यों की पराजय से अभिभूत होकर चाणक्य ने व्यावहारिक राजनीति में प्रवेश करने का संकल्प किया। उनकी सर्वोपरि इच्छा, भारत को एक गौरवशाली और विशाल राज्य के रूप में देखने की थी। आचार्य कौटिल्य को एक ओर पारंगत और दूरदर्शी राजनीतिज्ञ के रूप में मौर्य साम्राज्य का संस्थापक और संरक्षक माना जाता है, तो दूसरी ओर उन्हें संस्कृति साहित्य के इतिहास में अपनी अतुलनीय एवं अद्भुत कृति के कारण अपने विषय का एकमात्र विद्वान होने का गौरव प्राप्त है। कौटिल्य की विद्वता, निपुणता और दूरदर्शिता का बखान भारत के शास्त्रों, काव्यों तथा अन्य ग्रंथों में परिव्याप्त है। कौटिल्य द्वारा नंदवंश का विनाश और मौर्यवंश की स्थापना से संबंधित कथा विष्णु पुराण में आती है। अति विद्वान और मौर्य साम्राज्य का महामंत्री होने के बावजूद कौटिल्य का जीवन सादगी का जीवन था। वो ‘सादा जीवन उच्च विचार’ के सही प्रतीक थे। उन्होंने अपने मंत्रित्वकाल में अत्यधिक सादगी का जीवन बिताया। एक प्रकांड विद्वान तथा एक गंभीर चिंतक के रूप में कौटिल्य तो विख्यात है ही, एक व्यावहारिक एवं चतुर राजनीतिज्ञ के रूप में भी उन्हें ख्याति मिली है। उनकी मान्यता थी कि राजा या मंत्री अपने चरित्र और ऊँचे आदर्शों के द्वारा लोगों के सामने एक प्रतिमान दे सकता है। उनहोंने सदैव मर्यादाओं का पालन किया और कर्मठता की जिंदगी बितायी। कहा जाता है कि बाद में उनहोंने मंत्री पद त्यागकर वानप्रस्थ जीवन व्यतीत किया था।

इसी वर्ष बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) के एमए (मास्टर ऑफ ऑर्ट्स) के पॉलिटिकल साइंस के पेपर में १५-१५ नंबर के दो प्रश्न पूछे गए-
प्रश्न नंबर 1- कौटिल्य के अर्थशास्त्र में GST के स्वरूप पर निबंध लिखिए।
प्रश्न नंबर 2- मनु ग्लोबलाइजेशन के पहले भारतीय विचारक हैं. चर्चा कीजिए।
पेपर तैयार करने वाले प्रोफेसर कौशल किशोर मिश्रा ने कहा, ‘हमने इस पर विचार किया और पाया कि विचारकों के दर्शन को नए उदाहरणों जैसे जीएसटी और ग्लोबलाइजेशन के जरिए छात्रों को पढ़ाया जाए।’ उन्होंने कहा, ‘यह मेरा विचार था कि छात्रों को इन उदाहरणों से परिचित कराया जाए, अगर ये किताब में नहीं हैं तो क्या हुआ? क्या ये हमारा दायित्व नहीं है कि पढ़ाने के नए तरीके खोजे जाएं।’ प्रोफेसर मिश्रा के मुताबिक कौटिल्य (चाणक्य) का अर्थशास्त्र पहली भारतीय किताब है जो जीएसटी के वर्तमान स्वरूप का संकेत देती है। जीएसटी का प्राथमिक कॉन्सेप्ट है कि उपभोक्ता को ज्यादा से ज्यादा लाभ मिलना चाहिए। जीएसटी का मतलब है कि देश की इकोनॉमी और वित्तीय व्यवस्था एक समान और एकीकृत होनी चाहिए। कौटिल्य पहले विचारक थे जिन्होंने राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को एकीकृत बनाने का विचार दिया। वास्तव में कौटिल्य ने ही अपने समय में विचार दिया था कि घरों की निर्माण सामग्री पर टैक्स की दर 20 प्रतिशत, सोने और अन्य धातुओं पर 20 प्रतिशत, सीमा शुल्क 20 प्रतिशत, बगीचों पर 5 प्रतिशत, नृत्य और कलाकारों पर 50 प्रतिशत टैक्स होना चाहिए।

अब विचार करने का विषय ये है कि ये विषय किताब में क्यों नहीं है..? क्या हमें अपनी धरोहरों की कोई क़द्र नहीं, या फिर कुछ ऐसा चल रहा है जो हमें अपनी जड़ों से अलग ही कर देना चाहता है। कोई भी सभ्यता अपनी विरासत की अवहेलना करके कैसे आगे बढ़ सकती है..? क्या हर पीढ़ी को उन्ही सिद्धसंतों का पुनः-पुनः प्रतिपादन करना पड़ेगा..? हमें बहुत कुछ नया सीखना है लेकिन पुरानी सार्थक विषयों की अवहेलना निश्चितरूप से हमारा मार्ग कठिन ही करेगी। भारतीय इतिहास की ऐसी बहुत सी विधाएँ है, धरोहरें है.. जिनको कुछ लोगों द्वारा या तो मिथक की तरह प्रस्तुत करके उपेक्षित किया गया है, या फिर उनके विरोधाभाषों का सहारा लेकर दो लोगों, दो समाजों या फिर दो समुदायों को एक दूसरे के विरोध में खड़ा करने की कुत्सित प्रयास किया गया है। हमें आवश्यकता है तो बस अपने अतीत और भविष्य के मध्य एक सामंजस्य की.. उसको जानने की.. उसको समझने की..।

वस्तुतः यदि चाणक्य के जीवन-चरित्र को देखा जाए तो उन्हें धन, यश और पद का कोई लोभ नहीं था। सारतत्व में वह एक ‘वितरागी’, ‘तपस्वी, कर्मठ और मर्यादाओं का पालन करने वाले व्यक्ति थे, जिनका जीवन आज भी अनुकरणीय है जिन्होंने बुद्धि, विवेक और कर्मों द्वारा भारत को जोड़ने का कार्य किया और उनका व्यक्तित्व एक “लौहपुरुष” के रूप में सदैव के लिए अंकित हो गया।