मन, शरीर का सूक्ष्मतम रूप है और शरीर, मन का स्थूल रूप है.. इसे हम कई सन्दर्भों में समझ सकते…
Category: प्राचीन भारत
१००० ई पू के पश्चात १६ महाजनपद उत्तर भारत में मिलते हैं जिनका अवन्ति, अश्मक, अंग, कम्बोज, काशी, कुरु, कोशल, गांधार, चेदि, वज्जि या वृजि, वत्स या वंश, पांचाल, मगध, मत्स्य या मच्छ, मल्ल और सुरसेन या शूरसेन के नाम से वर्णन मिलता है। ये सभी महाजनपद आज के उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान से बिहार तक और हिन्दुकुश से गोदावरी नदी तक में फैला हुआ था। ईसा पूर्व छठी सदी में वैयाकरण पाणिनि ने 22 महाजनपदों का उल्लेख किया है। इनमें से तीन – मगध, कोसल तथा वत्स को महत्वपूर्ण बताया गया है। कौटिल्य ने एक चक्रवर्ती सम्राट के अन्तर्गत संपूर्ण भारतवर्ष की राजनीतिक एकता के माध्यम से एक वृहत्तर संगठित भारत की परिकल्पना की थी। ईसापूर्व छठी सदी से ईसापूर्व दूसरी सदी तक प्रचलन में रहे आहत सिक्कों के वितरण से इंगित होता है कि ईसापूर्व चौथी सदी तक सम्पूर्ण भारत में एक ही मुद्रा प्रचलित थी। इससे उस युग में भारत के एकीकरण की साफ़ झलक दिखती है। तीसरी शताब्दी के आगे का समय जब भारत पर गुप्त वंश का शासन था, भारत का “स्वर्णिम काल” कहलाया।
भारतीय समाज को बाँटने हेतु इतिहास के कुछ बड़े झूठ
इतिहास ना सिर्फ हमारे अतीत का दर्पण होता है बल्कि भविष्य की दिशा और संभावित रूपरेखा भी होता है|…
अंगकोर वाट मंदिर – रहस्य से इतिहास की ओर
आस्था का कोई नियत स्थान तो नही होता परंतु नियत स्थानों से आस्था का उद्भव अवश्य हो सकता है। कभी…
राजा पोरस – ऐतिहासिक रूप से उपेक्षित एक नायक
१२ वीं सदी में एक आक्रमणकारी अपने कुछ घुड़सवारों के साथ उस समय भारत के उच्च शिक्षा के सर्वाधिक महत्वपूर्ण…