२६ नवंबर अर्थात राष्ट्रीय दुग्ध दिवस (NMD) को भारत में श्वेत-क्रांति के जनक डॉ॰ वर्गीस कुरियन के जन्म-दिवस के अवसर पर सम्पूर्ण भारत में २०१४ से आयोजित किया जा रहा है। आज देश में जब अनेकों संस्थाओं द्वारा मजदूर क्रांति, किसान क्रांति जैसे नारों और आयोजनों के साथ लोगों को उद्वेलित करने की कोशिश होती है तथा अपनी, समाज और सरकार की जिम्मेदारियों को एक दुसरे पर थोपकर अपने-अपने हित साधने की कोशिश होती है तो ऐसे समय में स्वेत-क्रांति के विषय में समझना नितांत आवश्यक है। वर्ष २०१४ में २६ नवंबर को देश की सभी दुग्ध सहकारी समितियों ने डॉ॰ वर्गीस कुरियन के जन्म-दिवस के अवसर पर ढेरों आयोजन किये जिसका विचार राष्ट्रीय दुग्ध संघ (IDA) ने रखा और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) के साथ सभी राज्य दुग्ध संघों ने मिलकर आगे बढ़ाया। उस समय गुजरात सहकारी मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (GCMMF), जो अमूल के सभी दुग्ध उत्पादों का विपणन करता है, ने लगभग १५ करोड़ थैलियों पर डॉ॰ वर्गीस कुरियन की फोटो के साथ राष्ट्रीय दुग्ध दिवस का लोगो लगाकर बाजार में उतारा।
डॉ॰ वर्गीस कुरियन ( 26 नवम्बर, 1921 – 9 सितंबर, 2012) का जन्म कालीकट, मद्रास प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत (अब कोझीकोड, केरल) में हुआ था। उनके पिता कोचीन में एक सिविल सर्जन थे। उन्होने 1940 में भौतिकी में स्नातक और फिर मद्रास विश्वविद्यालय से संबद्ध कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, गिंडी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद 1946 में स्टील टेक्निकल इंस्टिट्यूट, जमशेदपुर में शामिल हो गए और 1948 में भारत सरकार द्वारा दी गयी छात्रवृत्ति की सहायता से मिशिगन राज्य विश्वविद्यालय से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में मास्टर्स की डिग्री प्राप्त की। सन् 1949 मे डॉ॰ कुरियन ने स्वेछापूर्वक अपनी सरकारी नौकरी को त्याग कर कैरा जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ (KDCMPUL), जोकि अमूल के नाम से प्रसिद्ध है और सन 1946 मे भारत मे निर्मित एक कोआपरैटिव संघ है, से जुड़ गए। श्री त्रिभुवन भाई पटेल ने डॉ॰ कुरियन के साथ मिलकर गुजरात के खेडा जिले मे पहले कोऑपरेटिव कि स्थापना की। देश का सर्व प्रथम कोऑपरेटिव संघ केवल दो गाँवों के कोऑपरेटिव संस्थानों से शुरु हुआ था और वर्ष १९७३ में स्थापित गुजरात कोआपरैटिव मिल्क मार्केट फेडरेशन (GCMMF) का स्वामित्व आज करीब गुजरात के २८ लाख दुध उत्पादक संयुक्त रूप से कर रहे है। इसके अंतर्गत 11 हजार से अधिक गांवो के लगभग 20 लाख से ज्यादा किसान कार्य करते हैं। त्रिभुवन भाई पटेल की ईमानदारी और मेहनत ने डॉ॰ कुरियन को बहुत प्रोत्साहित किया और जब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री अमूल के सयंत्र का उद्घाटन करने गए तब उन्होंने डॉ॰ कुरियन को उनके अद्भुत योगदान के लिए बधाई दी। इस बीच डॉ॰ कुरियन के दोस्त और डेयरी विशेषज्ञ एच. एम. दलाया, ने स्किम मिल्क पाउडर और कंडेंस्ड मिल्क को गाय के बजाय भैंस के दूध से बनाने की प्रक्रिया का अविष्कार किया। यही कारण था कि अमूल का नेस्ले, जो केवल गाय का दूध इस्तेमाल करते थे, के साथ सफलतापूर्वक मुकाबला हो पाया। अमूल की सफलता को देख कर उस समय के प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री ने राष्ट्रीय डेयऱी विकास बोर्ड का निर्माण किया और उसके प्रतिरुप को देश भर मे परिपालित किया। उन्होने डॉ॰ कुरियन की क्षमता और दूरदृष्टि को देखते हुए उन्हें बोर्ड के अध्यक्ष के रूप मे चुना। सन् 1970 में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) द्वारा शुरु की गई ऑपरेशन फल्ड या धवल क्रान्ति विश्व के सबसे विशालतम विकास कार्यक्रम के रूप मे प्रसिद्ध है जिसमे डॉ॰ कुरियन और उनकी टीम ने ना केवल दो दशकों में हमारे देश भारत को दूध-आयातक से दूध और दूध के उत्पादों का निर्यातक एवं विश्व मे दूध का सबसे बड़ा उत्पादक बना दिया बल्कि अनगिनत किसानों कि जिंदगी संवार दी। इस योजना की सफलता के तहत इसे ‘श्वेत क्रन्ति’ का पर्यायवाची नाम दिया गया। डॉ॰ कुरियन ने और भी कई कदम लिये जैसे दुध पाउडर बनाना, कई प्रकार के डेयरी उत्पादों को निकालना, मवेशी के स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करना और टीकाकरण इत्यादि। ऑपरेशन फल्ड तीन चरणों मे पूरा किया गया और इसने देश मे दुग्ध क्रांति लाने मे अहम भूमिका निभाई। भारत सरकार ने उनके योगदान के लिये उन्हें पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण प्रदत्त किया है। उन्हें “वर्ल्ड फूड प्राइज़”, रेमन मैगसेसे पुरस्कार अपने सामाजिक नेतृत्व के लिये, एवं “कार्नेगी-वॉटेलर वर्ल्ड पीस प्राइज़” आदि जैसे अन्य पुरस्कारों से नवाज़ा गया है। इसी के साथ उन्हें दुनिया भर के विश्वविद्यालयों से लगभग 12 मानद उपाधियों से सम्मानित किया गाया है।
श्याम बेनेगल ने मंथन नाम से एक फिल्म बनाई जोकि भारत के एक सहकारी दुग्ध अन्दोलन पर आधारित थी। बेनेगल की सहायता के लिए डॉ॰ कुरियन ने किसानों से 2 रूपए का टोकन लेकर इस फिल्म को बनाने में अपना सहयोग देने के लिए आग्रह किया। 1976 पर इसके विमोचन के दौरान यह फिल्म सफल साबित हुई और इसे देशभर में भी रिलीज़ किया गया। इसकी आलोचकों ने भी काफी प्रसंशा की और इसने आने वाले साल में अनेक राष्ट्रीय पुरष्कार भी जीते।
आज के समय जब अलग अलग क्रांतियों के नाम पर समाज और सरकार को एक दुसरे के विरुद्ध खड़ा करने कि कोशिश होती है तब हमें डॉ॰ कुरियन से प्रेरणा लेकर इस बात को समझने और जोर देने कि जरूरत है कि समाज को सकारात्मक रूप से साथ लेकर कैसे उन्हें अपने पैरों पर खड़ा किया जा सके। एक ऐसी क्रान्ति को जन्म दिया जा सके जो लोगों को टकराव नहीं बल्कि सृजन और सहयोग के लिए प्रेरित कर सके। आज जब हम दुग्ध निर्यात के क्षेत्र में आगे बढ़ चुके है तो ऐसी संस्थाओं और संघों की जरूरत है जो देश के गरीब और कुपोषित बच्चों के हाथ में भी एक गिलास दूध के लिए एक नए चरण की शुरुआत कर सके। हमारे समाज की विडंबना ये भी है की एक तरफ जहां हम दुग्ध उत्पादन में अग्रणी राष्ट्र है वही पैसे के लालच में दूध की मिलावट के शिकार भी..। अक्सर समाचारों में मिलावटी दूध की खबरें मिलती रहती है और त्योहारों के समय लोगों का डर इतना बढ़ जाता है कि लोग उस समय दुग्ध उत्पादों से किनारा करने लगते है। मुनाफे के चक्कर में, ये मिलावटखोरी का जहर ना सिर्फ लोगों को शारीरिक क्षति पहुंचाता है बल्कि मानसिक क्षति भी पहुंचाता है। आज हमें जरूरत है उस पहल की जब हम सिर्फ अपने ही स्वास्थ्य के लिए ही ना सोचें बल्कि दूसरों के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें। ऐसे लोगों को भी सही दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया जा सके जो पैसों के लालच में समाज और देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। सरकारी व्यवस्था अपने दायित्वों का ईमानदारी के साथ सतत निर्वाहन करे ना कि अवसर और सुविधा के अनुसार..। आज देश को पुनः उसी प्रकार के क्रांति की आवश्यकता है जिसके मूल में स्वास्थ्य भी हो और स्वस्थ चेतना भी.. एक सकारात्मक “स्वस्थ-क्रांति“..!
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